this post was submitted on 11 Sep 2023
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India
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“अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार.
रोज़ अखबारों में पढ़कर यह ख़्याल आया हमें,
इस तरफ़ आती तो हम भी देखते फ़स्ले—बहार.
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं,
बोलना भी है मना, सच बोलना तो दरकिनार.
इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं,
आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार.
रौनक़े-जन्नत ज़रा भी मुझको रास आई नहीं,
मैं जहन्नुम में बहुत ख़ुश था मेरे परवरदिगार.”
— दुष्यंत कुमार